पशुपतिनाथ की व्रत कथा - Pashupatinath Vrat Katha

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Pashupatinath Vrat Katha


अगर आप किसी समस्या के परेशान है या आपकी कोई मनोकामना है तो आप पशुपति व्रत जरूर रखे। पशुपति व्रत में पशुपति व्रत की कथा सुनना भी बेहद जरुरी है। इसलिए आज के इस पोस्ट में हम पशुपतिनाथ व्रत की कथा बताने जा रहे है। जो इस प्रकार है -

दोस्तों, इस कथा को सुनने से पहले आप अपने हाथ में कुछ अक्षत यानि चावल के दाने ले लीजिये। और यदि आपके साथ और भी लोग इस कथा का श्रवण कर रहे है तो उन्हें भी कुछ अक्षत दे दे।  फिर जब कथा समाप्त हो जाये तो इन चावलों को भगवन के सामने छोड़ दे।

पशुपति व्रत कथा | Pashupati Vrat Katha

एक समय की बात है भगवान शिव नेपाल की सुन्दर तपोभूमि से आकर्षित होकर, एक बार कैलाश छोड़ कर यहीं आकर रम गये। इस क्षेत्र में वह 3 सींग वाले मृग बनकर विचरण करने लगे। अतः इस क्षेत्र को पशुपति क्षेत्र या मृगस्थली भी कहते हैं। शिव को इस प्रकार अनुपस्थित देख कर ब्रह्नाा, विष्णु को चिंता हुई और दोनों देवता भगवान शिव की खोज में निकले।

इस सुंदर क्षेत्र में उन्होंने एक मोहक 3 सींग वाले मृग को विचरण करते देखा। उन्हें मृग रूप में शिव होने की आशंका होने लगी। ब्रह्नाा जी ने योग विद्या से तुरंत पहचान लिया कि यह मृग नहीं, बल्कि भगवान शिव ही है। ब्रह्नाा जी ने तत्काल ही उछल कर उन्होंने मृग का सींग पकड़ने का प्रयास किया। इससे मृग के सींग के 3 टुकड़े हो गये।

उसी सींग का एक टुकड़ा इस पवित्र क्षेत्र में गिरा और यहां पर महारुद्र उत्पन्न हुए, जो श्री पशुपति नाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए। शिव जी की इच्छानुसार भगवान विष्णु ने नागमती के ऊंचे टीले पर भगवान शिव को मुक्ति दिलाकर लिंग के रूप में स्थापना की, जो पशुपति के रूप में विख्यात हुआ।

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